श्री बाबा लालू जसराय देवाय नमः

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परिचय

मंदिर श्री माता हिंगलाज जी (पाकिस्तान)

कराची से लगभग साठ मील की दूरी पर समुन्द्र के किनारे जगत जननी श्री माता हिंगलाज जी का मंदिर है। यहाँ प्राचीन काल से अखण्ड ज्योति के दर्शन होते है। दक्ष प्रजापति के यज्ञ में सती ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। शिव जी सती के अधजले शव को कंधे पर उठा कर चल पड़े। शव के टुकड़े जहाँ जहाँ गिरे वे शक्ति पीठ कहलाये। ऐसे इकावन शक्ति पीठो का वर्णन हमारे शास्त्रों में है। जहाँ पर सती जी के शरीर का मुख्य अंग कपाल गिरा, वह हिंगलाज शक्ति पीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस शक्ति पीठ को अति पावन एवं महत्वपूर्ण मन जाता है। मंदिर तक पहुचने का मार्ग अति कठिन है लेकिन फिर भी श्रद्धालु विश्वास एवं साहस पूर्वक यहाँ पहुचने का प्रयत्न करते है।

मंदिर श्री भगवती चण्डिका देवी जी दीपालपुर (पाकिस्तान)

इस मंदिर का निर्माण तांत्रिको के कहने पर रजा श्री चन्द्र ने करवाया था।

मंदिर श्री बाबा जसराय जी दीपालपुर (पाकिस्तान)

मंदिर श्री बाबा लालू जसराय जी का निर्माण भी रजा श्री चन्द्र जी ने करवाया। यह वही पावन स्थान है जहाँ पर माता हिंगलाज के बीर (लालू एवं अगाकड़) पृथ्वी में समाये थे।

मंदिर श्री बाबा लालू जसराय जी (छिपिवाडा कलां, जामा मस्जिद, दिल्ली-११०००६)

पाकिस्तान बनने के लगभग दो सौ वर्ष पूर्व बाबा जी के सेवक श्री मोती लाल जी खन्ना, बाबा जी के प्रातः स्मरणीय दयावान श्री पंडित चनरा मुनि जी झिन्गद के वंशज (बाबे वालो) से दीपालपुर मंदिर की एक ईंट मांग कर लाये थे जिसकी स्थापना इस मंदिर में विधि पूर्वक की गई और उस दिन से अब तक यह मंदिर श्री बाबा लालू जसराय के नाम से प्रसिद्ध है। उसी समय से यहाँ माघ के महीने में मेला लगता आ रहा है।

भावीवश १९४७ में देश का बंटवारा हो जाने से मंदिर श्री बाबा लालू जसराय (दीपालपुर) पाकिस्तान में रह गया। सब को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा। पंडित चन्द्र मुनि जी महाराज के वंशज परम स्नेही पंडित गौरी शंकर जी झिंगड़ परिवार सहित दिल्ली पहुचे और कई सम्बंधित परिवार भिन्न-भिन्न स्थानों पर कैम्पों में ठहरे। पंडित गौरी शंकर जी को भी दिल्ली, फतेहपुरी में श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में ठहरना पड़ा। छिपिवाडा में उनको बाबा जी के मंदिर की जानकारी थी। वे बाबा जी के मंदिर पधारे। वे क्षत्रिय वर्ग के खन्ना, सेठ, मेहरा तवार के दिन स्वयं माँ शुभमूर्ति जी बाबा जी के मंदिर में अरदास करने के लिए पधारती हैं। हम बाबे वाले पुरोहित पराम्भा शक्ति हिंगलाज नमता चंडिका के चरणों में माँ शुभमूर्ति जी के सदैव अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हैं ताकि उनके भक्तों एवं समस्त जनता जनार्दन को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता रहे।

माँ शुभमूर्ति जी के आशीर्वाद से बहुत कम समय में श्री राधा कृष्ण मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। अब रात्रि को यात्रियों के ठहरने के लिए पर्याप्त स्थान है यात्रियों के लिए बिस्तरों इत्यादि का प्रबंध भी मंदिर की प्रबंधक कमेटी ही करती है तथा अन्य सुख सुविधा प्राप्त करवाती है| श्री राज कपूर एवं भोली पंडित पराशर के विशेष सहयोग से इस मंदिर का जीर्णोधार हुआ है| ..एवं कपूर सेवको से मिले| सेवको में वयोवृद्ध ला. ज्योति प्रसाद खन्ना,

तुंरत सभी सेवको की एक मीटिंग बुलाई गई जिस में पंडित गौरी शंकर जी झिन्गड़ भी उपस्थित थे और सर्व सम्मति से यह निश्चय किया गया की इसी महीने से यह शुभ कार्य प्रारंभ कर दिया जाये| इसके साथ ही बाबा लालू जसराय जी के चरणों में प्रार्थना की गई की आप माघ के महीने में माता हिंगलाज से आशीर्वाद लेकर इसी छिप्पिवाडा मंदिर में पधारे और अपने सेवको की मनोकामनाओ को पूरा करे| तत्पश्चात पंडित गौरी शंकर जी ने मुझे (वेद प्रकाश झिन्गड़ बाबे वाले) पंडित प्यारे लाल जी झिन्गड़, पंडित राम प्रकाश जी झिन्गड़ को सूचित किया की आप तत्काल दिल्ली पहुचे तथा सर्व सम्मति से यह निश्चय हुआ है की बाबा जी माघ मेला इसी वर्ष १९४८ से छिप्पिवाडा कलां दिल्ली स्थित, बाबा जी के मंदिर मनाया जाये|

३० जनवरी, १९४८ को हम दिल्ली पहुचे| वयोवृद्ध पूज्य बाबा परमानन्द जी दुराला (उत्तर प्रदेश) से दिल्ली पहुच गए| बाबा बंसीधर जी, बाबा देवी दान जी एवं परम पूज्य क्ष्ध्दये बाबा हरिराम जी भी दिल्ली पधारे| बाबा जी के अन्य सेवको सहित पंडित चन्द्र मुनि वंशज पुरोहितो द्वारा बाबा जी की ज्योति पूजन, बाबा जी की आरती एवं अरदास करते हुए माघ मेला अति हर्षोल्लास एवं उत्साह से प्रारंभ हुआ| पहले तो केवल छिप्पिवाडा के सेवको को ही माघ मेला के बारे में ज्ञात हुआ| तत्पश्चात प्रबंधक कमेटी मंदिर श्री बाबा जी लालू जसराय की ओर से चित्रपट एवं समाचार पत्रों के माध्यम से बाबा जी के सभी सेवको को सूचित करने का प्रयास किया गया| प्रथम वर्ष बाहर से थोड़े सेवक पहुचे लेकिन तत्पश्चात सेवको की संख्या निरंतर बढती गई| माता हिंगलाज भगवती की कृपा एवं श्री बाबा लालू जसराय की अपर अनुकम्पा से भारत वर्ष से बाहर विदेशो में रहने वाले सेवक भी अब बाबा जी के दर्शनार्थ इस मंदिर में आते है, तथा सभी ढंग एवं कार्य परिचालित परंपरा के अनुसार संपन्न करवाते है, और बाबा जी का आशीर्वाद प्राप्त करते है| मंदिर के आँगन में स्थान कम है| शरद ऋतु में दूर-दूर से आये सेवको के लिए

शनिवार के दिन रात्रि को ठहरने के लिए कोई स्थान नहीं था| इस मंदिर की थोडी पर स्थित श्री राधा कृष्ण मंदिर जो अत्यंत जीर्ण अवस्था में था, बाबा जी की प्रेरणा से उस मंदिर का जीर्णोधार करने का छिप्पिवाडा निवासी एवं नव युवको ने संकल्प लिया| इसका प्रथम श्रेय १००८ महामंडलेश्वर, तपस्विनी माँ शुभमूर्ति जी को है जिन्होंने खन्ना वंश में जन्म लेकर अपने तपोमय परोपकारी जीवन से खन्ना वंश को उज्वल किया है और दुःखी जनता जनार्दन के कल्याण के लिए सदेव हर संभव सहायता प्रदान करने प्रयत्नशील है| उनका देवी मंदिर भी इसी गली में स्थित है जिसमे नित्य-प्रति संकीर्तन लंगर एवं ब्रह्मभोज संपन्न होते रहते है|